Wednesday, 14 March 2007

पुनर्जन्म हो यदि मेरा….


समाजवाद का सरौता अब सैफ़ई गांव से सधता नज़र नहीं आ रहा. तभी तो हमरे भइया चल पड़े गंगा किनारे. पता नहीं जीवन में कितनी बार गंगा नहाए हैं पर गीत ज़रूर सुना रहे हैं...पुनर्जन्म हो यदि मेरा तो फिर हो गंगा के तट पर...

माननीय बच्चन बाबू, गंगा किनारे के हम भी हैं और आपसे ज़्यादा करेर, पक्के, चोखे गंगा किनारे वाले हैं. आप राशनकार्ड तो एंबीवैली का रखते हैं और दावा करते हैं खाटी इलाहाबादी होने का. ये हाथी के दांत आप फ़िल्म उद्योग और गंगापारियों को ही दिखाएं, हम आपको गंगा किनारे वाला नहीं मानते.

इसलिए, क्योंकि आप चंदौली, मिर्ज़ापुर, बनारस, भदोही और सोनभद्र में भूख से हो रही मौतों के बारे में कुछ नहीं जानते और न ही जानना चाहते हैं.

क्योंकि हथकरघे के खाली पाटों को उबालकर पीते कबीर के वंशज आपको नज़र नहीं आते.

क्योंकि बेरोज़गारी, अपहरण, हत्या, फिरौती और ठेकेदारी की दबंग लामबंदी की भेंट चढ़ते विकास जैसे संकटों से आपका कोई नाता नहीं है, आप उनके ख़ून बराबर कीमती राजकोष से मोटी रक़म पा रहे हैं, आप ब्राँड एंबेसडर जो ठहरे.

क्योंकि आपके हाथ में जो उदघाटन की कैंची है, वह बाज़ार की चमक के रिबन और प्रदेश की आबरू बचाने वाले पेटीकोट के नाड़े के फ़र्क को नहीं जानती है. आप नहीं जानते आप क्या काट रहे हैं, किसका उदघाटन करे दे रहे हैं.

इसलिए आप दोबारा अगर पैदा हों तो भारत में न हों, और अगर होना ही पड़े तो कम से कम गंगा किनारे न हों.... मुंबई में पैदा हो जाइए या फिर गुजरात में...यहाँ नहीं, गंगा किनारे नहीं.

‘पुनर्जन्म हो यदि तेरा, तो न हो गंगा के तट पर….’

4 comments:

Unknown said...

सही है गुरु,
बच्‍चन साहब के ईमेल पर फॉरवर्ड क्‍यों नहीं कर देते...बंद अक्‍ल का ताला शायद खुल सके...

Anil Dubey said...

kahe itna gussa rahe hain.unhun ka dhandha hai...du chaar jhuth bolne se yadi jebi mein chaar rupiya aa jata hai to ka haraz hai.koi raha tha puchhne wala unko jab karze mein dube rahe.aawa koi bachawe khatir.ye to amar bhahiya mil gaye tab kaam hua nahi to unhun ke bundelkhand ke kissanan jaisan aatmhatya par majbur hona padta.ab samhale hai.dui pai haath mein hain.bitwa kamaye lagal.kamasut patoh mil gayi taa sab dekh ke jarne lage.ab yi amar bahiya ke karan to hua.aur ab amar bhiya bolenge ki dui line bol do sabe hatth dhoi ke pichhe pad gaye.yi to kaho ki wo nibha rahe hain nahi to aaj kaun nibhata hai.bhale aadmi hain.aur unko samajwad aur politics se kaa matlab.jayaji to amar bahiya ke kahne se sansad mein chali gayi nahi ta wo to kabe politics se tauba kar chuke hain.ab batao ki itna amar bahiya kiye...bitwa ko bentle de diye tab bhi halla machane lage.dui baar jaya ji ko sansad mein pahunchawa.film board ka president banawa.kaun karta hai...karoge kaa aap.halla kar rahe ho.amit jee aap apna kaam karte rahiye ye log aishi halla karte hain.suna nahi bitwa GURU film mein kaa bol raha hai...Yadi tohre baare mein log halla karne lage to samjhiyo tu tarakki par ho.

Unknown said...

जिसको सीने में जलना था
आग पेट में जलती वो
ये उपलब्धि मैं इतराऊँ
मेरे बस की बात नहीं...

लेकिन गुरू किसी ने सही कहा पड़ोसी पड़ोसी की तरक्की नहीं देख पाता..बच्चन बाबू के आप पड़ोसी हैं ...का इही बदे पचा नहीं पा रहे हैं(just kidding)
...स्वदेश

Aviansh Kumar Singh said...

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