Sunday, 3 June 2007

एक अहम सवाल...

हैदराबाद के धमाकों के बाद एक बात पर बहस फिर से शुरू हो गई कि धमाके के पीछे किस मजहब के लोगों का हाथ है. कहाँ से आए ये आतंकवादी और कौन सा देश है इनके पीछे...

यह दलील अक्षरधाम, संसद पर हमले, राम जन्मभूमि के पास विस्फोट, बनारस और दिल्ली के धमाकों तक ख़ूब जमकर प्रचारित की गई. इसके बाद से मुसलमान इस देश के दुश्मन हैं, की धारणा को और हवा दी गई पर मुंबई, जामा मस्जिद, मालेगांव और हैदराबाद के बारे में इसी दलील को दोहराना अटपटा और नासमझी भरा है.


धमाकों के तुरंत बाद आनन-फानन ने कुछ विदेशी मुस्लिम चरमपंथी संगठनों का हवाला दे दिया गया कि साजिश के पीछे इनका हाथ हो सकता है. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया और कहा कि ऐसा तो कोई ग़ैर-मुसलमान ही कर सकता है.


अब यहाँ मैं दो पहलुओं पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ. एक तो यह कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और इराक़ में धमाके भी मुसलमान कर रहे हैं और मर भी मुसलमान ही रहे हैं इसलिए ऐसा कहना थोड़ा-सा मुश्किल है कि कोई मुसलमान मस्जिद में ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इस तरह के हमले करने वालों का कोई मजहब होता ही नहीं. बल्कि इस तरह देखें कि अक्सर धर्म का ग़लत इस्तेमाल और उसको नुकसान, उससे अनुयायियों के साथ अन्याय उन लोगों ने ही किया है जो उसके ठेकेदार बने हैं.


भारत के संदर्भ में देखें तो पिछले तीन दशकों में देशभर में जिस तरह के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का काम अलग-अलग संप्रदायों के ठेकेदारों ने किया है उसके बाद सोच के लिए एक ही बिंदु पर अटके रहना बेमानी है.


चाहे वो खालिस्तान की मांग कर रहे सिख गरमपंथी हों या फिर देशभर में हिंदुत्व की ठेकेदारी जमा रहे हिंदू चरमपंथी, हिंसा और हमले के मामले में इनकी तैयारी न तो कच्ची है और न कम है. गुजरात जिस तैयारी और क्रूरता के साथ अंजाम दिया गया, उससे इसका साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है.


मेरा इशारा इस ओर है कि इस तरह की घटनाओं के पीछे या अली ही नहीं, जय बजरंग बली का भी नारा हो सकता है. सोच के दायरे और तरीके को अब बदलने की ज़रूरत है वरना प्रशासन और लोगों की यह सोच देश के धर्मनिरपेक्ष चेहरे को ही बदल देगी.

3 comments:

हरिमोहन सिंह said...

सही सोच है कि धमाके कोई भी कर सकता है पर ऑंख खोलकर देख लो , सब धर्मो के मानने वालो से जरा दिल खोलकर बात करों , सब पता चल जायेगा कि असलियत क्‍या है

ravishndtv said...

सहमत हूं। रास्ता दिखाने के लिए। लेकिन कई बार इसलिए भी संगठन का नाम आता है कि उसे माना जाता है कि वह आतंकवादी है। जैसे हैदराबाद के संदर्भ में हूजी का नाम। तो क्या इसका नाम ही न लिया जाए। मुझे नहीं लगता कि मीडिया इन संगठनों का नाम इसलिए लेता है कि इनका ताल्लुक किसी मजहब से है।

पर आनंद आपकी बात बहुत हद तक ठीक भी है। मस्जिद में मुसलमान हमला कर सकता है। लाल मस्जिद में आतंकवादी थे तो मुशर्रफ ने हमला कर दिया।

Satyendra PS said...

bahut sahi likha guru. Blast ko dharm se jodne ki parampara hi galat hai. Abhi haal me maine nawaj sharif ke interview ki pustak Gaddar kaun parhi , jo 4 din pahle release hui, woh spast kahte hain ki ISI par koi niyantran nahi hai, woh apni iccha se kaam karte hain.
Ab blast ko dharm se jodkr dikhane ka vyavaharik vichar bhi khatm ho gaya. aatankvad ko muslim se jodne walon ki dukaan band hoti nazar aa rahi hai.


Padini ji aap in dino kahan hain? mai bhi delhi me shift ho gaya hoon, banaras ke baad to kabhi mulakaat hi nahi hui.
satyendra